मुझे गिला न किसी संग का न आहन का
उसी ने तोड़ दिया जिस का आईना था मैं
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साथ उस के रह सके न बग़ैर उस के रह सके
जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
हम हैं और राह-ए-कू-ए-बदनामी
याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक
एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई
कैसे क़िस्से थे कि छिड़ जाएँ तो उड़ जाती थी नींद
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
मैं उस को भूल गया था वो याद सा आया
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है