याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक
मैं भरी महफ़िल में बैठा था कि तन्हा हो गया
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(528) Peoples Rate This
दश्त ओ दर ख़ैर मनाएँ कि अभी वहशत में
दुख दे या रुस्वाई दे
नींद से पहले
मशरिक़ हार गया
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
आफ़ाक़
सख़्त बीवी को शिकायत है जवान-ए-नौ से
साथ उस के रह सके न बग़ैर उस के रह सके
मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ
जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
रस्म-ए-जहाँ न छूट सकी तर्क-ए-इश्क़ से
शायद कोई बंदा-ए-ख़ुदा आए