सख़्त बीवी को शिकायत है जवान-ए-नौ से
रेल चलती नहीं गिर जाता है पहले सिगनल
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मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर
जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
आ के अब जंगल में ये उक़्दा खुला
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
घर में कुछ कम है ये एहसास भी होता है 'सलीम'
नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
राख
किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं
कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
ज़िंदगी मौत के पहलू में भली लगती है
कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था