मोहल्ले वाले मेरे कार-ए-बे-मसरफ़ पे हँसते हैं
मैं बच्चों के लिए गलियों में ग़ुब्बारे बनाता हूँ
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मुझे गिला न किसी संग का न आहन का
अब
और तो क्या दिया बहारों ने
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं
नींद से पहले
कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
समाअतों को अमीन-ए-नवा-ए-राज़ किया
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती
बुरा लगा मिरे साक़ी को ज़िक्र-ए-तिश्ना-लबी