और तो क्या दिया बहारों ने
बस यही चार दिन की रुस्वाई
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वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
क़ुर्ब-ए-बदन से कम न हुए दिल के फ़ासले
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं
नुक़्ता
स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का
आफ़ाक़
मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर
ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें
ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है
ये चाहा था कि पत्थर बन के जी लूँ
आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर