बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग
मगर उस आग ने दिल को मिरे गुदाज़ किया
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Gulzar
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एक दरवाज़े पर
देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना
नींद से पहले
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
ज़िंदगी मौत के पहलू में भली लगती है
दुख दे या रुस्वाई दे
स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का
इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर
रोज़ काग़ज़ पे बनाता हूँ मैं क़दमों के नुक़ूश
ये चाहा था कि पत्थर बन के जी लूँ
बार-हा यूँ भी हुआ तेरी मोहब्बत की क़सम
याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक