मेरे घर के दरवाज़े पर....
दस्तक देने वाले ने पूछा!!
इन्दर कौन है
मैं हूँ
चंद सदाएँ आईं
ये सब झूटे हैं
मैं तो शहर से बाहर गया हुआ हूँ
मेरे पीछे!
घर के नौकर ''मैं'' बन बैठे हैं
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
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ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें
निकल गए हैं जो बादल बरसने वाले थे
रस्म-ए-जहाँ न छूट सकी तर्क-ए-इश्क़ से
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
हम हैं और राह-ए-कू-ए-बदनामी
ये कैसे लोग हैं सदियों की वीरानी में रहते हैं
वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी
नींद से पहले
बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है
लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा
कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा
मशरिक़ हार गया