ये कैसे लोग हैं सदियों की वीरानी में रहते हैं
इन्हें कमरों की बोसीदा छतों से डर नहीं लगता
Gulzar
Javed Akhtar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
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ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें
दुख दे या रुस्वाई दे
बुरा लगा मिरे साक़ी को ज़िक्र-ए-तिश्ना-लबी
एक दरवाज़े पर
दिल के लेने से 'सलीम' उस को नहीं है इंकार
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
माने तो किस की दीवाना माने
समाअतों को अमीन-ए-नवा-ए-राज़ किया
इक आग सी जलती रही ता-उम्र लहू में
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा