बार-हा यूँ भी हुआ तेरी मोहब्बत की क़सम
जान कर हम ने तुझे ख़ुद से ख़फ़ा रक्खा है
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ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है
दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
दिया
मेरा चेहरा
साथ उस के रह सके न बग़ैर उस के रह सके
कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं
रोज़ काग़ज़ पे बनाता हूँ मैं क़दमों के नुक़ूश
लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा
मैं तुझ को कितना चाहता हूँ
आ के अब जंगल में ये उक़्दा खुला
साए को साए में गुम होते तो देखा होगा