रोज़ काग़ज़ पे बनाता हूँ मैं क़दमों के नुक़ूश
कोई चलता नहीं और हम-सफ़री लगती है
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आँखें
इक आग सी जलती रही ता-उम्र लहू में
जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई
मुझ को दुश्वार हुआ जिस का नज़ारा तन्हा
दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए
आ के अब जंगल में ये उक़्दा खुला
आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ