ताज़गी है सुख़न-ए-कुहना में ये बाद-ए-वफ़ात
लोग अक्सर मिरे जीने का गुमाँ रखते हैं
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(919) Peoples Rate This
है मोहब्बत सब को उस के अबरू-ए-ख़मदार की
तमाम उम्र यूँ ही हो गई बसर अपनी
ज़ोर है गर्मी-ए-बाज़ार तिरे कूचे में
गया वो छोड़ कर रस्ते में मुझ को
सब हमारे लिए ज़ंजीर लिए फिरते हैं
हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
तू ने महजूर कर दिया हम को
गो तू मिलता नहीं पर दिल के तक़ाज़े से हम
रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं
तकल्लुम ही फ़क़त है उस सनम का
है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का
दिल सियह है बाल हैं सब अपने पीरी में सफ़ेद