जीने Poetry (page 11)

वह ज़ुल्म-ओ-सितम ढाए और मुझ से वफ़ा माँगे

फ़िरदौस गयावी

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

फ़ज़्ल ताबिश

समुंदर सर पटक कर मर रहा था

फ़े सीन एजाज़

ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है

फ़सीह अकमल

मौत

फ़ारूक़ नाज़की

मेरे चेहरे की स्याही का पता दे कोई

फ़ारूक़ नाज़की

हमें सलीक़ा न आया जहाँ में जीने का

फ़ारिग़ बुख़ारी

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

ढूँडेंगे हर इक चीज़ में जीने की उमंगें

फ़रहत नदीम हुमायूँ

हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

अब ज़िंदगी रो रो के गुज़ारेंगे नहीं हम

फ़रहत नदीम हुमायूँ

मामूल

फ़रहत एहसास

तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता

फ़रहत एहसास

सहरा के संगीन सफ़र में आब-रसानी कम न पड़े

फ़रहत एहसास

मिरे शे'रों में फ़नकारी नहीं है

फ़रहत एहसास

मेहरबाँ मौत ने मरतों को जिला रक्खा है

फ़रहत एहसास

कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना

फ़रहत एहसास

हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है

फ़रहत एहसास

हम से मिल कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए

फ़रहत अब्बास

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी

फ़ानी बदायुनी

लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए

फ़ैज़ुल हसन

ऐ दिल अच्छा नहीं मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ हो जाना

फ़ैज़ुल हसन

इस वक़्त तो यूँ लगता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं

फ़हमी बदायूनी

हम ने मयख़ाने की तक़्दीस बचा ली होती

एज़ाज़ अफ़ज़ल

दर्स-ए-आराम मेरे ज़ौक़-ए-सफ़र ने न दिया

एज़ाज़ अफ़ज़ल

बीमारी की ख़बर

एहतिशाम हुसैन

देख कर जादा-ए-हस्ती पे सुबुक-गाम मुझे

एहतिशाम हुसैन

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