डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
करवटें लेने लगे तब्अ वो पहलू ये है
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इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
मिस सीमीं बदन
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में