ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में
तुझे ये डिग्रियाँ बूढ़ों का हम-सिन कर नहीं सकतीं
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दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
लिपट भी जा न रुक 'अकबर' ग़ज़ब की ब्यूटी है
मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी
क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती है
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ और चुनीं रही
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है