मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी
अब सिर्फ़ मनअ करते हैं देसी शराब को
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मदरसा अलीगढ़
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़
दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ 'अकबर'
क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक
नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें
अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें
तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता