रहमान के फ़रिश्ते गो हैं बहुत मुक़द्दस
शैतान ही की जानिब लेकिन मेजोरिटी है
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बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब-ए-वस्ल
ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है
मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
अब तो है इश्क़-ए-बुताँ में ज़िंदगानी का मज़ा
इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए