लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
सब तो जेनरेल हैं यहाँ आख़िर सिपाही कौन है
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ख़िलाफ़-ए-शरअ कभी शैख़ थूकता भी नहीं
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का
हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का
ये बात ग़लत कि दार-उल-इस्लाम है हिन्द
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को