खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
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आह जो दिल से निकाली जाएगी
तकमील में उन उलूम के हो मसरूफ़
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं