तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
असर लेकिन निगाह-ए-नाज़ का भी कम नहीं होता
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क्या पूछते हो 'अकबर'-ए-शोरीदा-सर का हाल
रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
लिपट भी जा न रुक 'अकबर' ग़ज़ब की ब्यूटी है
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है
मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है