हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
हर बाग़ में ये कली नहीं खिलने की
कुछ पढ़ के तू सनअत-ओ-ज़राअत को देख
इज़्ज़त के लिए काफ़ी है ऐ दिल नेकी
Faiz Ahmad Faiz
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बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए
वो लुत्फ़ अब हिन्दू मुसलमाँ में कहाँ
आह जो दिल से निकाली जाएगी
तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
मिस सीमीं बदन
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को