रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद
Gulzar
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इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
ये बात ग़लत कि दार-उल-इस्लाम है हिन्द
हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
ग़फ़लत की हँसी से आह भरना अच्छा
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना