इब्न-ए-मुफ़्ती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इब्न-ए-मुफ़्ती

इब्न-ए-मुफ़्ती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इब्न-ए-मुफ़्ती
नामइब्न-ए-मुफ़्ती
अंग्रेज़ी नामIbn-e-Mufti

यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं

ये कारोबार भी कब रास आया

याद का क्या है आ गई फिर से

तेरे ख़्वाबों की लत लगी जब से

फिर से वो लौट कर नहीं आया

कर बुरा तो भला नहीं होता

कैसा जादू है समझ आता नहीं

जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक

हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा

इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना

दिल में सज्दे किया करो 'मुफ़्ती'

दिल की बातों को दिल समझता है

अब तो कर डालिए वफ़ा उस को

मकड़ी

अजब है खेल कैरम का

वो ख़्वाब जैसा था गोया सराब लगता था

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

फिर से वो लौट कर नहीं आया

नफ़रतें न अदावतें बाक़ी हैं

कर बुरा तो भला नहीं होता

हम से मिलते थे सितारे आप के

ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के

दिल वही अश्क-बार रहता है

बर्क़ ने जब भी आँख खोली है

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