Love Poetry of Ibn-e-Mufti
नाम | इब्न-ए-मुफ़्ती |
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अंग्रेज़ी नाम | Ibn-e-Mufti |
कविताएं
Ghazal 9
Nazam 2
Couplets 13
Love 12
Sad 8
Heart Broken 8
Hope 7
Friendship 4
Islamic 3
Social 2
ख्वाब 5
Sharab 2
यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं
ये कारोबार भी कब रास आया
कैसा जादू है समझ आता नहीं
अजब है खेल कैरम का
वो ख़्वाब जैसा था गोया सराब लगता था
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
फिर से वो लौट कर नहीं आया
कर बुरा तो भला नहीं होता
हम से मिलते थे सितारे आप के
ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के
दिल वही अश्क-बार रहता है
बर्क़ ने जब भी आँख खोली है