ये कारोबार भी कब रास आया
ख़सारे में रहे हम प्यार कर के
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कैसा जादू है समझ आता नहीं
दिल में सज्दे किया करो 'मुफ़्ती'
मकड़ी
कर बुरा तो भला नहीं होता
ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
दिल की बातों को दिल समझता है
फिर से वो लौट कर नहीं आया
अजब है खेल कैरम का
हम से मिलते थे सितारे आप के
जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक