याद का क्या है आ गई फिर से
आँख का क्या है फिर से रो ली है
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अब तो कर डालिए वफ़ा उस को
ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के
जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक
दिल की बातों को दिल समझता है
नफ़रतें न अदावतें बाक़ी हैं
हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा
ये कारोबार भी कब रास आया
दिल वही अश्क-बार रहता है
मकड़ी
फिर से वो लौट कर नहीं आया
इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना
कर बुरा तो भला नहीं होता