कैसा जादू है समझ आता नहीं
नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
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हम से मिलते थे सितारे आप के
फिर से वो लौट कर नहीं आया
अजब है खेल कैरम का
वो ख़्वाब जैसा था गोया सराब लगता था
कर बुरा तो भला नहीं होता
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
तेरे ख़्वाबों की लत लगी जब से
इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना
जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक