फिर से वो लौट कर नहीं आया
फिर दुआ में असर नहीं आया
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ये कारोबार भी कब रास आया
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के
अब तो कर डालिए वफ़ा उस को
कर बुरा तो भला नहीं होता
यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं
मकड़ी
हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा
हम से मिलते थे सितारे आप के