मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत
कोई वादा पूरा हुआ चाहता है
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मिट्टी का दिया
होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
शहद-ओ-शकर से शीरीं उर्दू ज़बाँ हमारी
दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
जब मायूसी दिलों पे छा जाती है
मुँह कहाँ तक छुपाओगे हम से
वक़्त की मुसाइदत
वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है
अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं
'हाली' सुख़न में 'शेफ़्ता' से मुस्तफ़ीद है
ऐ ऐश-ओ-तरब तू ने जहाँ राज किया