'हाली' सुख़न में 'शेफ़्ता' से मुस्तफ़ीद है
'ग़ालिब' का मो'तक़िद है मुक़ल्लिद है 'मीर' का
Allama Iqbal
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जीते जी मौत के तुम मुँह में न जाना हरगिज़
इश्क़
सख़्त मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हर सम्त गर्द-ए-नाक़ा-ए-लैला बुलंद है
हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ
नअत
हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
रिफॉर्म की हद
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
हुब्ब-ए-वतन