हर सम्त गर्द-ए-नाक़ा-ए-लैला बुलंद है
पहुँचे जो हौसला हो किसी शहसवार का
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है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और
दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
ऐ ऐश-ओ-तरब तू ने जहाँ राज किया
राह के तालिब हैं पर बे-राह पड़ते हैं क़दम
क़लक़ और दिल में सिवा हो गया
जीते जी मौत के तुम मुँह में न जाना हरगिज़
रोना है ये कि आप भी हँसते थे वर्ना याँ
मुख़ालिफ़त का जवाब ख़ामोशी से बेहतर नहीं
हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ
वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है
सख़्ती का जवाब नर्मी है