हक़ बोल के अहल-ए-शर से अड़ना न कहीं
भड़केगी मुदाफ़अत से और आतिश-ए-कीं
गर चाहते हो कि चुप रहें अहल-ए-ख़िलाफ़
जुज़ तर्क-ए-ख़िलाफ़ कोई तदबीर नहीं
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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Anwar Masood
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Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
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ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम
यारान-ए-तेज़-गाम ने महमिल को जा लिया
तौहीद
फ़राग़त से दुनिया में हर दम न बैठो
दिखाना पड़ेगा मुझे ज़ख़्म-ए-दिल
कह दो कोई साक़ी से कि हम मरते हैं प्यासे
आसार-ए-ज़वाल
बात कुछ हम से बन न आई आज
रंज और रंज भी तन्हाई का
दिल को दर्द-आश्ना किया तू ने
गुल-ओ-गुलचीं का गिला बुलबुल-ए-ख़ुश-लहजा न कर
क़लक़ और दिल में सिवा हो गया