क़लक़ और दिल में सिवा हो गया
दिलासा तुम्हारा बला हो गया
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वाँ अगर जाएँ तो ले कर जाएँ क्या
मिट्टी का दिया
सख़्ती का जवाब नर्मी है
हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक
इश्क़
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है
मरज़-ए-पीरी ला-इलाज है
अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
जुनूँ कार-फ़रमा हुआ चाहता है
आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम