फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
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तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त
वस्ल का उस के दिल-ए-ज़ार तमन्नाई है
आसार-ए-ज़वाल
मेडिकल टेस्ट
सख़्ती का जवाब नर्मी है
बात कुछ हम से बन न आई आज
सुकूत-ए-दरवेश-ए-जाहिल
जुनूँ कार-फ़रमा हुआ चाहता है
होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
कब्क ओ क़ुमरी में है झगड़ा कि चमन किस का है
मुनाजात-ए-बेवा
इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद