रोना है ये कि आप भी हँसते थे वर्ना याँ
तअ'न-ए-रक़ीब दिल पे कुछ ऐसा गिराँ न था
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तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
तौहीद
नअत
बहुत जी ख़ुश हुआ 'हाली' से मिल कर
तक़ाज़ा-ए-सिन
यही है इबादत यही दीन ओ ईमाँ
सख़्ती का जवाब नर्मी है
इक दर्द हो बस आठ पहर दिल में कि जिस को
इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी