हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और
आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ
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तुम ऐसे कौन ख़ुदा हो कि उम्र भर तुम से
इश्क़ को तर्क-ए-जुनूँ से क्या ग़रज़
जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
वक़्त की मुसाइदत
मेडिकल टेस्ट
हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक
शहद-ओ-शकर से शीरीं उर्दू ज़बाँ हमारी
वाँ अगर जाएँ तो ले कर जाएँ क्या
राह के तालिब हैं पर बे-राह पड़ते हैं क़दम
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
जब मायूसी दिलों पे छा जाती है
गुल-ओ-गुलचीं का गिला बुलबुल-ए-ख़ुश-लहजा न कर