जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
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फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी
ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही में मरना हो तो दुश्वार नहीं
धूम थी अपनी पारसाई की
मरज़-ए-पीरी ला-इलाज है
वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
कह दो कोई साक़ी से कि हम मरते हैं प्यासे
ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है बे-सर्फ़ा मोहतसिब
तौहीद
दिखाना पड़ेगा मुझे ज़ख़्म-ए-दिल
इक दर्द हो बस आठ पहर दिल में कि जिस को
आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम