स्वीकृत Poetry

चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है

रश्मि सबा

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

रास्ते तीरा सही सीने तो बे-नूर नहीं

ज़िया जालंधरी

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का

ज़हीर देहलवी

रंज राहत-असर न हो जाए

ज़हीर देहलवी

इसे मंज़ूर नहीं छोड़ झगड़ता क्या है

ज़फ़र इक़बाल

मुझ को ता-उम्र तड़पने की सज़ा ही देना

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

ढूँढता हक़ को दर-ब-दर है तू

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला

वाजिद अली शाह अख़्तर

हम को मंज़ूर तुम्हारा जो न पर्दा होता

वहीद अख़्तर

ख़ाके

वहीद अहमद

अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में

विलास पंडित मुसाफ़िर

हर क़दम पर मुझे लग़्ज़िश का गुमाँ होता है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

शहर से एक तरफ़ दूर बहुत

तिलोकचंद महरूम

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

इतना मुझे ख़ुदा मिरे मशहूर तू न कर

तरुणा मिश्रा

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं

तालिब अली खान ऐशी

बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना

तालीफ़ हैदर

काबा है अगर शैख़ का मस्जूद-ए-ख़लाइक़

ताबाँ अब्दुल हई

तेरे दर से मैं उठा लेकिन न मेरा दिल उठा

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हम को हवस-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर नहीं है

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

अपना दुनिया से सफ़र ठहरा है

सय्यद अाग़ा अली महर

हमारे हाल की जा कर उन्हें ख़बर तो करें

सूरज नारायण

हुस्न को जो मंज़ूर हुआ

सूफ़ी तबस्सुम

हर हर वरक़ पे क्यूँ कि लिखूँ दास्तान-ए-हिज्र

सिराज औरंगाबादी

सहरा में कड़ी धूप का डर होते हुए भी

शोज़ेब काशिर

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