स्वीकृत Poetry (page 2)

अदल-ए-जहाँगीरी

शिबली नोमानी

अदल-ए-फ़ारूक़ी का एक नमूना

शिबली नोमानी

आलम में हुस्न तेरा मशहूर जानते हैं

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में

ज़ौक़

चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए

ज़ौक़

अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी

शीन काफ़ निज़ाम

कभी जंगल कभी सहरा कभी दरिया लिख्खा

शीन काफ़ निज़ाम

लब चुप हैं तो क्या दिल गिला-पर्दाज़ नहीं है

शौक़ क़िदवाई

जन्नत से दूर

शारिक़ कैफ़ी

मुश्तइ'ल हो गया वो ग़ुंचा-दहन दानिस्ता

शम्स रम्ज़ी

ग़म दिए हैं तो मसर्रत के गुहर भी देना

शम्स रम्ज़ी

आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर

शकील बदायुनी

वो हम से दूर होते जा रहे हैं

शकील बदायुनी

जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं

शकील बदायुनी

ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है

शकील बदायुनी

दूर हैं वो और कितनी दूर

शकील बदायुनी

चाँदनी में रुख़-ए-ज़ेबा नहीं देखा जाता

शकील बदायुनी

ज़िंदा रहना है तो साँसों का ज़ियाँ और सही

शकील आज़मी

क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है

शकेब जलाली

देखना उस की तजल्ली का जिसे मंज़ूर है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को

शहरयार

ए'तिराफ़

शाहिद अख़्तर

ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर

शाह नसीर

इस दिल में अगर जल्वा-ए-दिल-दार न होता

शाह आसिम

जान या दिल नज़्र करना चाहिए

शाद लखनवी

गले लिपटे हैं वो बिजली के डर से

शाद लखनवी

आ गया है वक़्त अब भुगतोगे ख़ामियाज़े बहुत

शबाब ललित

जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है

सीमाब अकबराबादी

इक चराग़-ए-दिल फ़क़त रौशन अगर मेरा भी है

सौरभ शेखर

तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

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