स्वीकृत Poetry (page 6)

साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं

दाग़ देहलवी

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

ज़ख़्म को फूल कहें नौहे को नग़्मा समझें

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे

बेख़ुद देहलवी

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए

बेदम शाह वारसी

आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी

बयान मेरठी

कहा अग़्यार का हक़ में मिरे मंज़ूर मत कीजो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

बशीर बद्र

बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ताबिश-ए-हुस्न हिजाब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर नहीं

बर्क़ देहलवी

न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया

ज़फ़र

ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है

अज़्म शाकरी

एक ही ख़त में है क्या हाल जो मज़कूर नहीं

अज़ीज़ लखनवी

काश समझदार न बनूँ

अतीया दाऊद

वो नक़ाब आप से उठ जाए तो कुछ दूर नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

चमचे की दुआ

असरार जामई

किस क़दर दर्द के शब करता था मज़कूर तिरा

आसिफ़ुद्दौला

दिल धड़कता है कि तू यार है सौदाई का

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

बस-कि दीदार तिरा जल्वा-ए-क़ुद्दूसी है

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का

अरशद अली ख़ान क़लक़

परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है

अरशद अली ख़ान क़लक़

मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है

अरशद अब्दुल हमीद

दरमियाँ गर न तिरा वादा-ए-फ़र्दा होता

अनवर मसूद

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ

अनवर देहलवी

माल-ए-दुनिया तलाश करना है

अनीस अब्र

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