आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर
नेक बंदे ख़ुदा से डरते हैं
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Anwar Masood
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ज़िंदगी उन की चाह में गुज़री
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई
सब करिश्मात-ए-तसव्वुर हैं 'शकील'
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
किस से जा कर माँगिये दर्द-ए-मोहब्बत की दवा
उन से उम्मीद-ए-रू-नुमाई है
हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
ज़ौक़-ए-गुनाह ओ अज़्म-ए-पशेमाँ लिए हुए
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे