अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
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न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है
वो हम से ख़फ़ा हैं हम उन से ख़फ़ा हैं
दिल के बहलाने की तदबीर तो है
मेरी दीवानगी नहीं जाती
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
शोख़ नज़रों में जो शामिल बरहमी हो जाएगी
ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ
इश्क़ का कोई ख़ैर-ख़्वाह तो है
अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ
उन को शरह-ए-ग़म सुनाई जाएगी
रंग-ए-सनम-कदा जो ज़रा याद आ गया
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन