अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ
दुनिया में कोई दोस्त मिरे काम तो आया
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दिल मरकज़-ए-हिजाब बनाया न जाएगा
तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है
जुनूँ से गुज़रने को जी चाहता है
शग़ुफ़्तगी-ए-दिल-ए-कारवाँ को क्या समझे
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
ख़ाना-ए-उम्मीद बे-नूर-ओ-ज़िया होने को है
कब तक 'शकील' दिल को दुआ कीजिएगा आप
पहलू में दर्द-ए-इश्क़ की दुनिया लिए हुए