मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे
ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(835) Peoples Rate This
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ
बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया
बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें
नुमायाँ दोनों जानिब शान-ए-फ़ितरत होती जाती है
ज़ौक़-ए-गुनाह ओ अज़्म-ए-पशेमाँ लिए हुए
ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूँ
दिल वही दिल जिसे नाशाद किए जाता हूँ
बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी अगर उन्हें पेश-ओ-पस नहीं है
उन की तस्वीर देख कर
पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे