ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूँ
मुझ से अब ख़ून-ए-तमन्ना नहीं देखा जाता
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मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
आँख से आँख मिलाता है कोई
कब तक 'शकील' दिल को दुआ कीजिएगा आप
ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं
बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें
इक शहंशाह ने बनवा के....
आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी
अब तक शिकायतें हैं दिल-ए-बद-नसीब से
तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है
कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल
ला रहा है मय कोई शीशे में भर के सामने
नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता