नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता
वो क्या गए कि बहारों में जी नहीं लगता
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कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ' नहीं है
शग़ुफ़्तगी-ए-दिल-ए-कारवाँ को क्या समझे
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
वज्ह-ए-क़द्र-ओ-क़ीमत-ए-दिल हुस्न की तनवीर है
ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूँ
ऐ इश्क़ ये सब दुनिया वाले बे-कार की बातें करते हैं
मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना
ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ
उन से उम्मीद-ए-रू-नुमाई है
जब कभी हम तिरे कूचे से गुज़र जाते हैं
दिल वही दिल जिसे नाशाद किए जाता हूँ
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले