वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
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अलीगढ़ छोड़ने के ब'अद
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
जो दिल पे गुज़रती है वो समझा नहीं सकते
इहानत-ए-दिल-ए-सब्र-आज़मा नहीं करते
कोई ऐ 'शकील' पूछे ये जुनूँ नहीं तो क्या है
उन की तस्वीर देख कर
फ़रेब-ए-मोहब्बत से ग़ाफ़िल नहीं हूँ
किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
न सोचा था ये दिल लगाने से पहले
ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के हवाले कर दूँ
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ