उठा जो मीना-ब-दस्त साक़ी रही न कुछ ताब-ए-ज़ब्त बाक़ी
तमाम मय-कश पुकार उठ्ठे यहाँ से पहले यहाँ से पहले
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बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है
तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
बेकार गई आड़ तिरे पर्दा-ए-दर की
ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है
बे-ख़ुदी है न होशियारी है
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
बे-कसी से मरने मरने का भरम रह जाएगा
नज़र से क़ैद-ए-तअय्युन उठाई जाती है
हुई हम से ये नादानी तिरी महफ़िल में आ बैठे
काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
नियाज़-ओ-नाज़ की ये शान-ए-ज़ेबाई नहीं जाती
कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल