ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है
ये वो ख़िज़ाँ है जो डूबी हुई बहार में है
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नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता
उन को शरह-ए-ग़म सुनाई जाएगी
तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
न सोचा था ये दिल लगाने से पहले
पहलू में दर्द-ए-इश्क़ की दुनिया लिए हुए
मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में
तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है
ग़म से कहाँ ऐ इश्क़ मफ़र है
हर दिल में छुपा है तीर कोई हर पाँव में है ज़ंजीर कोई
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जुनूँ से गुज़रने को जी चाहता है
दिल के बहलाने की तदबीर तो है