मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में
मिरी ज़िंदगी तलातुम तिरी ज़िंदगी किनारा
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शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए
इहानत-ए-दिल-ए-सब्र-आज़मा नहीं करते
ये दुनिया है यहाँ दिल को लगाना किस को आता है
ग़म-ए-इश्क़ रह गया है ग़म-ए-जुस्तुजू में ढल कर
न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है
हम से मय-कश जो तौबा कर बैठें
आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया
मेरी दीवानगी नहीं जाती
बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था मगर
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
सितम-नवाज़ी-ए-पैहम है इश्क़ की फ़ितरत
सब करिश्मात-ए-तसव्वुर हैं 'शकील'