मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे
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नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
वो हम से दूर होते जा रहे हैं
दूर हैं वो और कितनी दूर
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
ग़म से कहाँ ऐ इश्क़ मफ़र है
हज़ार क़ैद-ए-ख़िज़ाँ से छुट कर बहार का आसरा करेंगे
तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है
मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शोलों का डर नहीं
मेरी बर्बादी को चश्म-ए-मो'तबर से देखिए
फ़रेब-ए-मोहब्बत से ग़ाफ़िल नहीं हूँ